लेह। संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) द्वारा शनिवार को संयुक्त रूप से आहूत मौन मार्च को अधिकारियों ने कड़े सुरक्षा उपाय और मोबाइल इंटरनेट बंद करके विफल कर दिया गया।
हालांकि, कारगिल में शांतिपूर्ण मौन मार्च निकाला गया, जिसमें केडीए नेताओं ने लेह में प्रतिबंधों की निंदा की, लेकिन 24 सितंबर की गोलीबारी की घटना की न्यायिक जांच की घोषणा का स्वागत किया, जिसमें कई लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे।
अधिकारियों ने कहा कि दोनों आंदोलनकारी समूहों द्वारा सुबह 10 बजे से दो घंटे के मौन मार्च और शाम 6 बजे से लद्दाख में तीन घंटे के ब्लैकआउट के आह्वान के बीच लेह और आसपास के इलाकों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भारी संख्या में तैनात किया गया था। यह आह्वान 24 सितंबर को व्यापक हिंसा में जान गंवाने वालों, घायलों और हिरासत में लिए गए लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए किया गया था, लेकिन कानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर से लेह में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी, मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद करने का आदेश दिया था।
अंजुमन इमामिया के अध्यक्ष और एलएबी के सदस्य अशरफ अली बरचा ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्होंने अपनी मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से उठाने के लिए मौन मार्च का आह्वान किया था, लेकिन प्रशासन ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके अपनी विफलता साबित कर दी है। उन्होंने भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए और लोगों को मार्च के लिए इकट्ठा नहीं होने दिया। सरकार को लोगों को डराने-धमकाने के लिए इस तरह के प्रतिबंध लगाने के बजाय उनसे बातचीत करनी चाहिए।
अंजुमन मोइन उल इस्लाम के प्रमुख अब्दुल कयूम ने दावा किया कि एलएबी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे को भी नज़रबंद कर दिया गया है और लोगों से अपील की गई है कि वे कड़े सुरक्षा उपायों के मद्देनजर मार्च स्थल तक पहुंचने का कोई प्रयास न करें। उन्होंने कहा कि हम कोई टकराव नहीं चाहते और किसी को भी (केंद्र सरकार के साथ) बातचीत को विफल नहीं करने देंगे। हम फिर मिलेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे।
कारगिल में केडीए नेताओं, जिनमें सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई और सज्जाद कारगिली शामिल थे, के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने हुसैनी पार्क से मुख्य बाज़ार होते हुए मुख्य बस स्टैंड तक शांतिपूर्ण मार्च निकाला। इस दौरान लोगों ने काली पट्टियां बांध रखी थीं। छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और सुरक्षा उपायों की अपनी मांग दोहराते हुए तख्तियां भी हाथों में लिए हुए थे।
सज्जाद कारगिली ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा की न्यायिक जांच के केंद्र के फैसले का स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि सरकार जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक सहित सभी हिरासत में लिए गए लोगों की बिना शर्त रिहाई और मारे गए चार लोगों और घायलों के परिवारों को पर्याप्त मुआवज़ा देने की घोषणा करे।
पत्रकारों से बात करते हुए करबलाई ने एलएबी नेतृत्व और लेह के लोगों पर लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा की और कहा कि ऐसे कदम लद्दाख के शांतिप्रिय लोगों को स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम न्यायिक जांच का स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि सरकार बातचीत शुरू करने से पहले दो कदम और उठाए। हम हमेशा बातचीत के पक्ष में रहे हैं। पहले भी, आज भी और कल भी। उन्होंने कहा कि बातचीत विशेष रूप से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के विस्तार पर होनी चाहिए।
करबलाई ने कहा कि लद्दाख के लोग थके नहीं हैं, न ही झुकने को तैयार हैं और न ही डरे हैं। हम अपनी जायज़ मांगों के लिए किसी भी तरह की कुर्बानी देने को तैयार हैं। करबलाई ने देश के नागरिक समाज का धन्यवाद किया, जिन्होंने लेह हिंसा के बाद उनका साथ दिया और उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने लद्दाख के लोगों को राष्ट्र-विरोधी बताकर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की।
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