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सिर्फ पहाड़ नहीं, जीवन का आधार है अरावली रेंज, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने इससे जुड़ी रोचक बातें और पर्यावरणीय महत्व

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अरावली पर्वत श्रृंखला का भारत के भूगोल और पर्यावरणीय संरचना में विशेष महत्व है। यह न केवल देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, बल्कि यह राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लगभग 692 किलोमीटर लंबी यह पर्वत श्रृंखला भारत के पश्चिमी भाग में फैली हुई है और माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति लगभग 3.2 अरब साल पहले हुई थी।

भौगोलिक विस्तार और संरचना
अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान के गुर्जर और अजमेर जिलों से शुरू होकर दिल्ली, हरियाणा से होते हुए हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले तक जाती है। यह श्रृंखला उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा तक फैली हुई है। इसकी प्रमुख पहाड़ियाँ माउंट आबू, गुरु शिखर, रघुनाथगढ़, सिरोही और अजमेर क्षेत्र में स्थित हैं। इस श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है और इसकी ऊँचाई लगभग 1,722 मीटर है।

भूवैज्ञानिक महत्व
अरावली पर्वत श्रृंखला का निर्माण प्राचीन प्रीकैम्ब्रियन काल में हुआ था, जो इसे दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक बनाता है। यह पर्वतमाला ग्रेनाइट, गनीस, शिस्ट और क्वार्टजाइट जैसी चट्टानों से बनी है। इसकी आयु इसे वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक अध्ययनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।

पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता
अरावली पर्वतमाला राजस्थान की शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में हरित पट्टी के रूप में कार्य करती है। यह पर्वतमाला रेगिस्तानीकरण की बढ़ती सीमा को रोकने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करती है। यहाँ कई तरह के वन्यजीव, पक्षी, औषधीय पौधे और पेड़ पाए जाते हैं, जिनमें साल, खेजड़ी, बबूल, नीम और बेर जैसे पेड़ शामिल हैं।यह क्षेत्र तेंदुए, लोमड़ी, लकड़बग्घा, नीलगाय, सांभर और कई तरह के पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। हाल के वर्षों में, इस क्षेत्र में जैव विविधता में गिरावट देखी गई है, जिसके पीछे अतिक्रमण, खनन और शहरीकरण का कारण है।

पर्यावरणीय चुनौतियाँ
हालाँकि अरावली पर्वतमाला का पर्यावरणीय महत्व बहुत अधिक है, लेकिन यह कई खतरों का सामना कर रही है। अवैध खनन, वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण ने इसके पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, अरावली की 30 प्रतिशत से अधिक पहाड़ियाँ बंजर हो गई हैं।अरावली की गिरती स्थिति दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण और पानी की कमी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक अवरोध बनाकर प्रदूषण और धूल को नियंत्रित करती थी।

संरक्षण के प्रयास
अरावली क्षेत्र के संरक्षण के लिए सरकार और विभिन्न पर्यावरण संगठनों द्वारा कई पहल की जा रही हैं। हरियाणा और राजस्थान की सरकारों ने वृक्षारोपण, अवैध खनन पर प्रतिबंध और संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, हाल ही में "अरावली ग्रीन वॉल" परियोजना प्रस्तावित की गई है, जिसका उद्देश्य इस पर्वत श्रृंखला को हरा-भरा बनाना और रेगिस्तान के प्रसार को रोकना है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
अरावली पर्वत श्रृंखला न केवल भौगोलिक या पर्यावरणीय दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर, गुरु शिखर, अचलगढ़ किला और अन्य धार्मिक स्थल सीधे तौर पर इस पर्वत श्रृंखला से जुड़े हुए हैं। ये स्थान धार्मिक यात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

निष्कर्ष
अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की प्राकृतिक धरोहरों में से एक है। इसका संरक्षण न केवल राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर के लिए बल्कि पूरे भारत के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आवश्यक है। इसके महत्व को समझते हुए हमें सामूहिक रूप से इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य का लाभ उठा सकें।

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