बंगाल की खाड़ी के पश्चिम-मध्य में बना चक्रवाती तूफ़ान 'मोंथा' पिछले छह घंटों में भीषण चक्रवाती तूफ़ान में तब्दील हो गया है.
चक्रवाती तूफ़ान 'मोंथा' बंगाल की पश्चिम-मध्य खाड़ी के ऊपर पिछले छह घंटों के दौरान 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ा और मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे बजे तक एक गंभीर चक्रवाती तूफ़ान में बदल गया.
ये आंध्र प्रदेश में मछलीपट्टनम से 190 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व, काकीनाडा से 270 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और विशाखापट्टनम से 340 किलोमीटर दक्षिण-दक्षिणपूर्व में केंद्रित था.
पीएम मोदी ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री से बात की, अधिकारियों को एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को अधिकारियों को चक्रवात मोंथा के मद्देनज़र उन जगहों पर एहतियाती कदम उठाने का निर्देश दिए हैं जहां बारिश और बाढ़ आ सकती है.
ऐसे में जानते हैं कि साइक्लोन मोंथा का नाम कैसे पड़ा और इसका क्या मतलब होता है?
कैसे पड़ा इस चक्रवात का नाम मोंथा?
BBC मोंथा नाम का सुझाव थाईलैंड ने दिया था. थाईलैंड उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवातों के नाम रखने में योगदान देने वाले 13 सदस्य देशों में से एक है. उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों को उस क्षेत्र के देशों की ओर से दी गई पहले से तय लिस्ट से नाम दिए जाते हैं.
मोंथा नाम का सुझाव थाईलैंड ने दिया था. थाईलैंड उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवातों के नाम रखने में योगदान देने वाले 13 सदस्य देशों में से एक है.
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एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) और विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) ने साल 2000 में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाले चक्रवातों को नाम देने की पद्धति शुरू की.
इसके तहत बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों के एक समूह ने बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाले चक्रवातों के लिए 13 नामों की एक सूची सौंपी.
2018 में इन देशों के पैनल में ईरान, क़तर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन का नाम भी जुड़ गया. इस पैनल का काम चक्रवातों के नाम तय करना है.
इन देशों की ओर से सुझाए गए नाम देश के नाम की वर्णमाला के हिसाब से सूचीबद्ध किए जाते हैं. इस सूची की शुरुआत बांग्लादेश से होती है.
फिर इसके बाद इसमें भारत, ईरान, मालदीव, ओमान, पाकिस्तान का नाम आता है.
इस क्रम के हिसाब से ही चक्रवातों के नाम रखे जाते हैं. 2020 में आए चक्रवात निवार के बाद जिन चक्रवातों के नाम सुनाई पड़ने वाले हैं वो हैं बुरेवी (मालदीव), तौकते (म्यांमार), यास (ओमान) और गुलाब (पाकिस्तान).
अप्रैल 2020 में इन नामों वाली नई सूची सदस्य देशों की ओर से मंजूर की गई है.
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पूरी दुनिया में क्षेत्रवार छह विशेष मौसम केंद्र और पांच चक्रवात चेतावनी केंद्र हैं. इन केंद्रों का काम चक्रवात से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करना और उनके नाम रखना है.
छह विशेष मौसम केंद्रों में से एक भारतीय मौसम विभाग भी है जो चक्रवात और आंधी को लेकर एडवाइज़री जारी करता है.
नई दिल्ली स्थित इस केंद्र का काम उत्तर हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का नामकरण करना भी है. उत्तर हिंद महासागर के तहत ही बंगाल की खाड़ी और अरब सागर आते हैं.
चक्रवातों के नाम रखने की वजह से वैज्ञानिक समुदाय, आपदा प्रबंधकों, मीडिया और आम लोगों में हर चक्रवात को अलग-अलग पहचानने में मदद मिलती है. इससे जागरूकता फैलाने में भी आसानी होती है.
क्षेत्र में एक ही वक़्त पर दो चक्रवात आने की स्थिति में कोई उलझन नहीं पैदा होती है.
किस चक्रवात की बात हो रही है इसे आसानी से याद किया जा सकता है. चक्रवात से संबंधी चेतावनी को बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलती है.
इसलिए अलग-अलग महासागरीय क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नामकरण उस क्षेत्र में मौजूद विशेष मौसम केंद्र या चक्रवात चेतावनी केंद्र करते हैं.
मस्कट में साल 2000 में ईएससीएपी और डब्लूएमओ के 27वें सम्मेलन के बाद चक्रवातों के नाम रखने को लेकर सैद्धांतिक तौर पर रज़ामंदी हुई है और साल 2004 के सितंबर महीने से सदस्य देशों के बीच लंबे विमर्श के बाद इसकी शुरुआत हुई.
उस वक़्त सूची में आठ देशों की ओर से सुझाए गए नाम शामिल थे. इस सूची में अब तक इस्तेमाल हुए लगभग सभी नाम थे सिर्फ़ आख़िरी अम्फन को छोड़कर.
2018 में ईएससीएपी और डब्लूएमओ के 45वें सम्मेलन में चक्रवातों के नाम वाली नई सूची तैयार की गई. इसमें पाँच नए सदस्य देशों के भी सुझाए गए नाम शामिल किए गए थे.
ये देश थे ईरान, क़तर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन.
इसके बाद कुल 13 सदस्य हो गए थे. इस सम्मेलन में भारतीय मौसम विभाग के डॉक्टर मृत्युंजय मोहापात्रा को विभिन्न सदस्य देशों के बीच समन्वय स्थापित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई ताकि सभी तय मापदंडों का पालन करते हुए चक्रवातों का नामकरण किया जा सके.
उनकी तैयार की गई रिपोर्ट को म्यांमार में हुए 46वें सम्मेलन में पेश किया गया और फिर उस पर विचार-विमर्श करने के बाद अप्रैल 2020 को मंज़ूर किया गया.
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प्रस्तावित नाम किसी भी राजनीतिक पार्टी, शख्सियत, धर्म, संस्कृति और लिंग के आधार पर नहीं होने चाहिए.
- नाम ऐसा होना चाहिए जिससे किसी समूह या तबक़े की भावना आहत न हो.
- यह सुनने में बहुत क्रूर या रुखा नहीं लगना चाहिए.
- यह कम शब्दों का और आसानी से बोला जाने वाला होना चाहिए और किसी भी सदस्य देशों के लिए आपत्तिजनक नहीं होना चाहिए.
- यह अंग्रेज़ी के सिर्फ़ आठ अक्षरों का होना चाहिए.
- प्रस्तावित नाम उसके उच्चारण और वॉयस ओवर के साथ होने चाहिए.
- पैनल के पास किसी भी नाम को ख़ारिज करने का अधिकार है, अगर किसी मापदंड पर वो नाम खड़ा नहीं उतरता है.
- किसी तरह की आपत्ति दर्ज करने की स्थिति में तय नामों की फिर से वार्षिक सम्मेलन में पैनल की मंज़ूरी से समीक्षा की जा सकती है.
- एक नाम का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसलिए हर बार नया नाम होना चाहिए. प्रस्तावित नाम दिल्ली स्थित केंद्र के अलावा दुनिया के किसी भी मौसम केंद्र में दर्ज नहीं होना चाहिए.
आठ देशों ने 2004 में जो सूची तैयार की थी, उसमें दर्ज नाम अम्फन तूफ़ान के आने तक समाप्त हो गए थे.
भारतीय मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल कहते हैं कि उत्तर हिंद महासागर के क्षेत्र में हर साल आम तौर पर पाँच चक्रवात उठते हैं तो उस हिसाब से अगले 25 सालों तक जो नई सूची तैयार हुई है, उसमें शामिल नामों से ही काम चलता रहेगा.
नई सूची में प्रत्येक देश ने 13 नाम दिए हैं. अर्नब (बांग्लादेश), शाहीन और बहार (क़तर), लुलु (पाकिस्तान) और पिंकू (म्यांमार) इस सूची में शामिल कुछ ऐसे ही नाम हैं.
भारत की ओर से प्रस्तावित तूफ़ानों के नाम हैं गति, तेज़, मुरासु (तमिल का एक वाद्य यंत्र), आग, नीर, प्रभांजन, घुरनी, अंबुद, जलाधि और वेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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