अगर आप दिल्ली, बेंगलुरु या मुंबई जैसे बड़े शहरों में रहते हो तो आपकी जेब जल्द ढ़ीली हो सकती है। बता दे कि आपका हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम अब बढ़ने वाला है। बीमा कंपनियां अब शहरों के हिसाब से दरें तय करने का विचार कर रही हैं, और साथ ही टियर-1 शहरों के लोगों के लिए यह बदलाव महंगा हो सकता है। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण।
प्रीमियम बढ़ने की वजह?
Insurance Samadhan की को-फाउंडर और COO शिल्पा अरोड़ा के अनुसार, शहर के हिसाब से प्रीमियम में अंतर सीधे जोखिम और इलाज की लागत से जुड़ा होता है। बड़े शहरों में अस्पताल में भर्ती होना, डायग्नॉस्टिक टेस्ट कराना और कमरे का किराया देना महंगा पड़ता है, वहीं कॉर्पोरेट अस्पतालों के बढ़ते नेटवर्क ने इलाज के खर्च को और बढ़ा दिया है। यही कारण है, कि इन शहरों से बीमा कंपनियों को अधिक क्लेम मिलते हैं। शिल्पा अरोड़ा बताती हैं कि शहरी जीवनशैली खुद कई बीमारियों की वजह बन रही है—हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी आम बीमारियों से लॉन्ग-टर्म क्लेम बढ़ते हैं, इसलिए बीमा कंपनियां इन्हें प्रीमियम तय करते समय शामिल करती हैं।
क्या है कारण
शिल्पा अरोड़ा के मुताबिक, प्रदूषण बीमा क्लेम बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने बताया कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अस्थमा, सीओपीडी और हार्ट डिजीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे क्लेम और क्लेम अमाउंट दोनों में बढ़ोतरी हो रही है। इसके अलावा, बड़े शहरों में कॉर्पोरेट अस्पतालों की ऊंची फीस भी क्लेम अमाउंट को और ज्यादा बना देती है।
कैसे तय करें प्रीमियम?
सेबी-रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर और SahajMoney के संस्थापक अभिषेक कुमार बताते हैं कि बीमा कंपनियां देश को तीन जोन में बांटती हैं: जोन 1 – मेट्रो सिटी, जोन 2 – टियर-1 शहर, और जोन 3 – बाकी भारत। इस सिस्टम के तहत मेट्रो शहरों के लोगों को 10 से 20% ज्यादा प्रीमियम देना पड़ता है, जिससे छोटे शहरों के लोग बड़े शहरों के महंगे इलाज का बोझ नहीं उठाते।
क्या प्रदूषण कवर वाला बीमा मिलेगा?
अरोड़ा ने बताया कि जैसे कोविड या डेंगू के लिए अलग से प्लान लाए हुए थे, बिल्कुल उसी तरह ही प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के लिए अलग ऐड-ऑन या कवर लाया जा सकता है। तो वहीं, अभिषेक कुमार का मानना है कि ज्यादातर हेल्थ पॉलिसियां पहले से ही सीओपीडी, अस्थमा, जैसी बीमारियों को कवर करती हैं, इसलिए फिलहाल नए कवर की जरूरत नहीं है। उन्होंने ये भी बताया कि बेहतर होगा यदि बीमा कंपनियां OPD कवरेज, हेल्थ चेक-अप और राइडर बेनिफिट्स पर ध्यान दें, जिससे सांस से जुड़ी बीमारियों से होने वाली लागत कम किये जा सके।
क्या यह सिस्टम सही है?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मेट्रो शहरों के लोगों से ज्यादा प्रीमियम लेना कहीं न कहीं उन्हें बेवजह सजा देने जैसा है। कुमार के अनुसार, “लोग प्रदूषण या ट्रैफिक जैसे कारणों को कंट्रोल नहीं कर सकते, फिर भी उन्हें उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।” उन्होंने बताया कि IRDAI ने बीमा कंपनियों को प्रीमियम तय करते समय पारदर्शिता बनाए रखने और हर प्राइसिंग को डेटा से साबित करने की हिदायत दी है।
बीमा कंपनियों की सबसे बड़ी चुनौती
अब असली चुनौती यह है कि बीमा कंपनियां सही प्राइसिंग रखें और पॉलिसी को सस्ती भी बनाएँ। अरोड़ा ने सुझाव दिया कि कंपनियों को कॉर्पोरेट हॉस्पिटल्स के साथ रेट नेगोशिएशन करनी चाहिए ताकि इलाज की लागत काबू में रहे। उन्होंने कहा, “फ्लेक्सिबल कवरेज और सिटी-बेस्ड ऐड-ऑन पॉलिसी से ग्राहक अपने हिसाब से सुरक्षा चुन सकते हैं।
हेल्थ इंश्योरेंस अब बस एक बीमारी बन कर नहीं रह गया, बल्कि लाइफस्टाइल, आपके शहर और हवा की कीमतों को भी वसूल रहा है। आने वाले समय में समझदारी इसी में होगा कि आ पॉलिसी चुनते समय अपने शहरों के जोन, कवरेज और खर्च को जरूर समझ ले।
प्रीमियम बढ़ने की वजह?
Insurance Samadhan की को-फाउंडर और COO शिल्पा अरोड़ा के अनुसार, शहर के हिसाब से प्रीमियम में अंतर सीधे जोखिम और इलाज की लागत से जुड़ा होता है। बड़े शहरों में अस्पताल में भर्ती होना, डायग्नॉस्टिक टेस्ट कराना और कमरे का किराया देना महंगा पड़ता है, वहीं कॉर्पोरेट अस्पतालों के बढ़ते नेटवर्क ने इलाज के खर्च को और बढ़ा दिया है। यही कारण है, कि इन शहरों से बीमा कंपनियों को अधिक क्लेम मिलते हैं। शिल्पा अरोड़ा बताती हैं कि शहरी जीवनशैली खुद कई बीमारियों की वजह बन रही है—हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी आम बीमारियों से लॉन्ग-टर्म क्लेम बढ़ते हैं, इसलिए बीमा कंपनियां इन्हें प्रीमियम तय करते समय शामिल करती हैं।
क्या है कारण
शिल्पा अरोड़ा के मुताबिक, प्रदूषण बीमा क्लेम बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने बताया कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अस्थमा, सीओपीडी और हार्ट डिजीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे क्लेम और क्लेम अमाउंट दोनों में बढ़ोतरी हो रही है। इसके अलावा, बड़े शहरों में कॉर्पोरेट अस्पतालों की ऊंची फीस भी क्लेम अमाउंट को और ज्यादा बना देती है।
कैसे तय करें प्रीमियम?
सेबी-रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर और SahajMoney के संस्थापक अभिषेक कुमार बताते हैं कि बीमा कंपनियां देश को तीन जोन में बांटती हैं: जोन 1 – मेट्रो सिटी, जोन 2 – टियर-1 शहर, और जोन 3 – बाकी भारत। इस सिस्टम के तहत मेट्रो शहरों के लोगों को 10 से 20% ज्यादा प्रीमियम देना पड़ता है, जिससे छोटे शहरों के लोग बड़े शहरों के महंगे इलाज का बोझ नहीं उठाते।
क्या प्रदूषण कवर वाला बीमा मिलेगा?
अरोड़ा ने बताया कि जैसे कोविड या डेंगू के लिए अलग से प्लान लाए हुए थे, बिल्कुल उसी तरह ही प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के लिए अलग ऐड-ऑन या कवर लाया जा सकता है। तो वहीं, अभिषेक कुमार का मानना है कि ज्यादातर हेल्थ पॉलिसियां पहले से ही सीओपीडी, अस्थमा, जैसी बीमारियों को कवर करती हैं, इसलिए फिलहाल नए कवर की जरूरत नहीं है। उन्होंने ये भी बताया कि बेहतर होगा यदि बीमा कंपनियां OPD कवरेज, हेल्थ चेक-अप और राइडर बेनिफिट्स पर ध्यान दें, जिससे सांस से जुड़ी बीमारियों से होने वाली लागत कम किये जा सके।
क्या यह सिस्टम सही है?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मेट्रो शहरों के लोगों से ज्यादा प्रीमियम लेना कहीं न कहीं उन्हें बेवजह सजा देने जैसा है। कुमार के अनुसार, “लोग प्रदूषण या ट्रैफिक जैसे कारणों को कंट्रोल नहीं कर सकते, फिर भी उन्हें उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।” उन्होंने बताया कि IRDAI ने बीमा कंपनियों को प्रीमियम तय करते समय पारदर्शिता बनाए रखने और हर प्राइसिंग को डेटा से साबित करने की हिदायत दी है।
बीमा कंपनियों की सबसे बड़ी चुनौती
अब असली चुनौती यह है कि बीमा कंपनियां सही प्राइसिंग रखें और पॉलिसी को सस्ती भी बनाएँ। अरोड़ा ने सुझाव दिया कि कंपनियों को कॉर्पोरेट हॉस्पिटल्स के साथ रेट नेगोशिएशन करनी चाहिए ताकि इलाज की लागत काबू में रहे। उन्होंने कहा, “फ्लेक्सिबल कवरेज और सिटी-बेस्ड ऐड-ऑन पॉलिसी से ग्राहक अपने हिसाब से सुरक्षा चुन सकते हैं।
हेल्थ इंश्योरेंस अब बस एक बीमारी बन कर नहीं रह गया, बल्कि लाइफस्टाइल, आपके शहर और हवा की कीमतों को भी वसूल रहा है। आने वाले समय में समझदारी इसी में होगा कि आ पॉलिसी चुनते समय अपने शहरों के जोन, कवरेज और खर्च को जरूर समझ ले।
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