हिंदू धर्म में पूजा या अन्य धार्मिक कार्यों के दौरान कलाई पर कलावा या मौली बांधने की परंपरा है। यह एक वैदिक परंपरा का हिस्सा है, जो यज्ञ के समय से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान वामन ने असुरों के राजा बलि की अमरता के लिए उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था, जिसे रक्षाबंधन का प्रतीक भी माना जाता है।
कलावा पहनने की अवधि
अधिकतर लोग कलावा बांधने के बाद उसे उतारना भूल जाते हैं, जिससे वह लंबे समय तक हाथ में बंधा रहता है। इससे कलावा अपनी ऊर्जा देना बंद कर देता है। शास्त्रों के अनुसार, इसे 21 दिनों तक ही पहनना चाहिए, क्योंकि इस अवधि के बाद कलावे का रंग फीका पड़ने लगता है।
कलावा का धार्मिक महत्व
हाथ में पहना जाने वाला लाल कलावा देवी दुर्गा और हनुमान जी की शक्ति का प्रतीक है। मान्यता है कि इसे पहनने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
कलावा से जुड़े उपाय
हिंदू मान्यता के अनुसार, यदि तुलसी, केले, शमी, आंवला जैसे पौधों को श्रद्धा से कलावा बांधा जाए, तो इससे जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कलावा बदलने का सही दिन
कलावा पहनने और उतारने के लिए शुभ दिन निर्धारित हैं। इसे मंगलवार या शनिवार को बदलना चाहिए, जबकि इसे किसी भी पूजा के दौरान पहना जा सकता है।
अशुभ कलावा ऐसा कलावा मानते हैं अशुभ :
यदि कलावा का रंग उतर गया है, तो उसे पहनना अशुभ माना जाता है। 21 दिनों के बाद इसे किसी शुभ मुहूर्त में फिर से बांधना चाहिए। कलावा उतारने पर यह नकारात्मकता को अपने साथ ले जाता है, इसलिए इसे दोबारा नहीं पहनना चाहिए। इसे बहती नदी में प्रवाहित करना शुभ होता है।
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