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मॉर्गन स्टेनली ने भारत की जीडीपी वृद्धि का बढ़ाया अनुमान, जीएसटी में कटौती से मांग बढ़ने की उम्मीद

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New Delhi, 1 सितंबर . मॉर्गन स्टेनली ने अप्रैल-जून तिमाही में भारत की मजबूत जीडीपी वृद्धि 7.8 प्रतिशत के मद्देनजर 2025-26 में देश की जीडीपी वृद्धि का अनुमान बढ़ा दिया है. साथ ही, उम्मीद है कि जीएसटी में आगामी कटौती से घरेलू मांग बढ़ेगी, जो अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के कारण निर्यात में आई गिरावट की भरपाई कर देगी.

रिपोर्ट में कहा गया है, “हमें उम्मीद है कि जीएसटी कर में आगामी कटौती, आगामी त्योहारी सीजन और ग्रामीण मांग में मजबूत रुझान घरेलू मांग को बढ़ावा देंगे. इसलिए, हम उम्मीद करते हैं कि सार्वजनिक खर्च में कमी, बाहरी मांग में कमी (मुख्य रूप से वस्तुओं का निर्यात) और निजी क्षेत्र की मांग में तेजी के साथ विकास की संरचना में बदलाव आएगा.”

इसमें आगे कहा गया है, “हमारा अनुमान है कि बाहरी मांग से लगभग 50 आधार अंकों (बीपीएस) की वृद्धिशील गिरावट की भरपाई संभावित रूप से जीएसटी में कटौती से हो सकती है, जिससे विकास को लगभग 50 बीपीएस तक बढ़ावा मिल सकता है.”

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मजबूत मानसून और खरीफ की बुआई कृषि क्षेत्र में मजबूती का संकेत देती है और आगे चलकर कृषि क्षेत्र की तेज वृद्धि को बढ़ावा देने की संभावना है.

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए, मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रियल जीडीपी वृद्धि दर को पहले अनुमानित 6.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर जनवरी-मार्च तिमाही के 7.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई.

आंतरिक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि सरकारी और निजी खपत दोनों में सालाना आधार पर क्रमशः 7.5 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि सकल स्थिर पूंजी निर्माण पिछली तिमाही के स्तर की तुलना में स्वस्थ रहने के बावजूद 7.8 प्रतिशत पर आ गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुकूल मानसून और बुआई चक्र के समर्थन से ग्रामीण मांग में निरंतर मजबूती, साथ ही कम होती मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक मजदूरी में सुधार ने खपत के स्तर को बढ़ावा दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्यात की तुलना में आयात में तेज वृद्धि के कारण शुद्ध निर्यात में कमी आई है, जबकि निर्यात की वृद्धि दर पिछली तिमाही के स्तर की तुलना में बढ़ी है. निर्यात में यह वृद्धि टैरिफ लागू होने से पहले अमेरिका को निर्यात में संभावित फ्रंट-लोडिंग के कारण हुई, जबकि अप्रैल-जून तिमाही में दुनिया के बाकी हिस्सों को निर्यात धीमा रहा.

एसकेटी/

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