नई दिल्ली, 22 अप्रैल . अदाणी समूह पर अपनी फर्जी रिपोर्ट्स के जरिए हमला करने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च जनवरी में अपने ऑपरेशंस को बंद करने का ऐलान कर चुकी है. लेकिन, इसमें रिसर्च फर्म के अंदरूनी कामकाज को उजागर करने और इसका समर्थन करने वालों को बेनकाब करने के लिए एक सीक्रेट जांच का बड़ा योगदान है.
जनवरी 2023 में, हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें अदाणी समूह को “कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला” बताया.
इस हमले से समूह के बाजार पूंजीकरण में 150 बिलियन डॉलर से अधिक की कमी आई, जिसके कारण समूह को अपनी सबसे बड़ी सार्वजनिक पेशकश रद्द करनी पड़ी थी. हालांकि, अब अदाणी ग्रुप मजबूत वापसी कर चुका है.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी के हाइफा पोर्ट के अधिग्रहण के लिए 1.2 बिलियन डॉलर के सौदे को अंतिम रूप देने के लिए इजरायल जाने से कुछ ही दिन पहले आई थी.
इजरायली फर्म गैडोट मासोफिम फॉर केमिकल्स लिमिटेड और अदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड के ज्वाइंट वेंचर ने हाइफा पोर्ट के लिए बोली जीती थी, जिसमें भारतीय फर्म के पास बहुमत हिस्सेदारी थी.
हाइफा पोर्ट के निजीकरण के लिए बोलियां, मूल्यांकन और मंजूरी मिलने में 18 महीने का लंबा समय लगा था. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 31 जनवरी, 2023 को हस्ताक्षर समारोह के समय उपस्थित थे.
जैसे ही हिंडनबर्ग की समूह के बारे में रिपोर्ट सामने आई, एक शीर्ष इजरायली नेता ने गौतम अदाणी से आरोपों के बारे में सवाल किया, जिसका भारतीय अरबपति ने पूरी दृढ़ता से जवाब दिया कि रिपोर्ट “पूरी तरह झूठ” थी.
मामले से जुड़े लोगों के अनुसार, समूह ने ‘ऑपरेशन जेपेलिन’ शुरू करके हिंडनबर्ग के खिलाफ जोरदार वापसी की. माना जाता है कि इसमें एक इजरायली खुफिया एजेंसी की भी सहायता ली गई.
इस प्रयास में पब्लिक रिलेशन, कानून और रणनीतिक युक्तियों का मिश्रण शामिल था, जिससे निवेशकों का विश्वास फिर से बहाल किया जा सके.
‘ऑपरेशन जेपेलिन’ का नाम प्रथम विश्व युद्ध के दौरान टोही और बमबारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जर्मन हवाई जहाजों के नाम पर रखा गया था.
सूत्रों के अनुसार, इजरायली लोगों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को हाइफा पोर्ट सौदे को कमजोर करने के लिए एक जानबूझकर किया गया प्रयास माना.
इस सौदे को ‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा’ के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अदाणी समूह ने मुख्य व्यवसायों पर ध्यान केंद्रित किया. वहीं, ‘ऑपरेशन जेपेलिन’ पर गुप्त रूप से काम करना जारी रखा.
सूत्रों के अनुसार, पूर्व खुफिया अधिकारी इस मामले में कड़ियों को जोड़ने में सफल रहे, क्योंकि उन्हें एक्टिविस्ट वकीलों, पत्रकारों, हेज फंडों और राजनीतिक हस्तियों का एक जाल मिला, जिनमें से कुछ कथित तौर पर चीनी हितों से जुड़े थे, जबकि अन्य वाशिंगटन के पावर ब्रोकर्स से जुड़े थे.
मामले से जुड़े लोगों के अनुसार, गौतम अदाणी को जनवरी 2024 में स्विट्जरलैंड की अपनी निजी यात्रा के दौरान गुप्त ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी गई थी.
अहमदाबाद में वकीलों और खुफिया सलाहकारों की एक टीम ने अमेरिका में निगरानी के दौरान काम किया. साइबर विशेषज्ञों और विश्लेषकों के साथ एक अत्याधुनिक कंट्रोल रूम स्थापित किया गया था और कानूनी टीमों ने अंतरराष्ट्रीय राजधानियों में काम किया.
2024 में लीक हुए दस्तावेजों में कथित तौर पर अमेरिकी एजेंसियों और मीडिया प्लेटफार्मों के बीच संबंध दिखाए गए थे, जो अदाणी विरोधी अभियानों को आगे बढ़ा रहे थे.
पिछले साल नवंबर में, अमेरिकी न्याय विभाग और प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) ने अदाणी समूह के प्रमुख अधिकारियों पर भारत में रिन्यूएबल एनर्जी सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए कथित ‘रिश्वत प्लान’ का हिस्सा होने का आरोप लगाया था.
अदाणी समूह ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया.
साथ ही, अदाणी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च और इसके संस्थापक नाथन एंडरसन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने की तैयारी की और एक कानूनी नोटिस भेजा गया.
अदाणी समूह की कानूनी टीम और हिंडनबर्ग अधिकारियों के बीच एक बैठक भी प्रस्तावित थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि बैठक हुई या नहीं.
15 जनवरी को, हिंडनबर्ग रिसर्च ने घोषणा की कि वह बंद हो रहा है. परिचालन को अचानक बंद करने के फैसले ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया, क्योंकि यह ऐलान अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से शपथ ग्रहण किए जाने से तीन दिन पहले किया गया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कनाडा के ओंटारियो में एक अदालती लड़ाई में शॉर्ट-सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च और उसके संस्थापक एंडरसन के खिलाफ पर्याप्त सबूत सामने आने लगे हैं, जिससे हिंडनबर्ग के सीक्रेट रिलेशन, फर्म और संस्थापक द्वारा किए गए संभावित प्रतिभूति धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है.
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एबीएस/एबीएम
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