New Delhi, 28 अक्टूबर . ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं के अनुसार, किसी व्यक्ति की जीभ का एमआरआई स्कैन ‘मोटर न्यूरॉन डिजीज’ (एमएनडी) की शुरुआती पहचान करने और इसकी निगरानी रखने में मदद कर सकता है. एमएनडी एक गंभीर न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है.
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया कि एमएनडी से पीड़ित लोगों की जीभ की मांसपेशियां सामान्य लोगों की तुलना में छोटी और कमजोर होती हैं. ऐसा खासतौर उनके साथ होता है, जिन्हें इस बीमारी में बोलने या निगलने में दिक्कत होती है. एमएनडी को आमतौर पर एएलएस भी कहा जाता है.
यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के डॉ. थॉमस शो ने बताया कि जीभ में आठ अलग तरह की मांसपेशियां होती हैं, जो हमारे खाने, निगलने और बोलने के काम को संभालती हैं. एमएनडी जैसी बीमारी में ये मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होकर सिकुड़ने लगती हैं. जब जीभ कमजोर हो जाती है, तो मरीज का बोलना और खाना दोनों प्रभावित होते हैं.
उन्होंने आगे कहा, ”अगर इस कमजोरी का पता जल्दी लग जाए और इसे समय-समय पर ट्रैक किया जाए, तो मरीज और डॉक्टर दोनों को फायदा होगा. यह खासतौर पर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो नए इलाज या क्लिनिकल ट्रायल तक जल्दी पहुंच चाहते हैं. शुरुआती पहचान से जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिल सकती है.”
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 200 से ज्यादा पुराने एमआरआई स्कैन का विश्लेषण किया, जिनमें कुछ एमएनडी वाले लोगों के स्कैन भी शामिल थे. उन्होंने एआई और एडवांस इमेजिंग तकनीकों का उपयोग करके जीभ की मांसपेशियों का आकार सटीक रूप से मापा.
शॉ ने बताया कि इन तुलना से यह स्पष्ट हुआ कि एमएनडी वाले लोगों की जीभ की मांसपेशियां सामान्य लोगों की तुलना में अलग होती हैं. स्कैन में अंतर इतना स्पष्ट था कि यह बीमारी के शुरुआती संकेतों को पहचानने में मदद कर सकता है.
कंप्यूटर्स इन बायोलॉजी एंड मेडिसिन में प्रकाशित इस शोध में बताया गया कि जो लोग एमएनडी के लक्षण जीभ, मुंह, गले या गर्दन में अनुभव करते हैं, उनका जीवनकाल उन लोगों की तुलना में कम होता है जिनके लक्षण हाथ-पैर में शुरू होते हैं.
यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन साइंसेज के डॉ. ब्रुक-माई वेलन ने बताया कि जीभ एक बहुत ही जटिल अंग है. यह हर दिन हजारों सटीक और छोटे-छोटे काम करती है, जिन्हें हम सामान्य रूप से महसूस भी नहीं करते. हम सिर्फ तब ही नोटिस करते हैं जब जीभ के काम करने की क्षमता कम होने लगे.
उन्होंने कहा, ”अगर यह समझा जा सके कि एमएनडी में कौन-कौन सी मांसपेशियां कमजोर होती हैं, तो ऐसे उपाय खोजे जा सकते हैं जो मरीज की मदद करें. उदाहरण के लिए, मरीज अपने बोलने के तरीके बदल सकता है और उन मांसपेशियों का इस्तेमाल कर सकता है जो अभी ठीक हैं. इससे न केवल उनके बोलने की क्षमता बनी रहती है बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है.”
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पीके/एएस
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