New Delhi, 2 अक्टूबर . उत्तर India में कढ़ी-चावल एक पारंपरिक डिश है, जिसे बड़े स्वाद के साथ खाया जाता है. ये डिश स्वाद के साथ-साथ सेहत का खजाना भी होती है. कढ़ी एक प्रोबायोटिक व्यंजन है, क्योंकि इसमें दही होती है, और दही पेट और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छी होती है.
हर उम्र में लोग कढ़ी-चावल खाना पसंद करते हैं, लेकिन गलत समय पर गलत मात्रा में कढ़ी-चावल का सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक होता है. India के लिए अलग-अलग राज्यों में कढ़ी-चावल बनाने का तरीका अलग है. पंजाब में पंजाबी कढ़ी यानी पकौड़े वाली कढ़ी खाई जाती है. Gujarat में मीठी कढ़ी खाई जाती है, जिसमें खूब सारी सब्जियां डाली जाती हैं, लेकिन इस कढ़ी में बेसन नहीं पड़ता.
पारंपरिक कढ़ी में ढेर सारा बेसन, हींग, कड़ी पत्ते और लहसुन का इस्तेमाल होता है, जो कढ़ी को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक दोनों बनाता है.
कढ़ी की तासीर वैसे तो गर्म होती है, लेकिन दही की वजह से ये पौष्टिक हो जाती है. इसके अलावा कढ़ी को डिटॉक्स व्यंजन भी मान सकते हैं, क्योंकि कढ़ी में मौजूद कड़ी पत्ता, हींग और हल्दी पेट को साफ करती हैं और आंतों में मौजूद बुरे बैक्टीरिया का भी नाश करती हैं. पेट से जुड़ी समस्या जैसे कब्ज में भी ये राहत देती है.
कढ़ी-चावल हल्का और सात्विक भोजन होता है. अगर कढ़ी में तले हुए पकौड़ों का इस्तेमाल न करे और हरी सब्जी जैसे पालक, बथुआ, या मेथी का इस्तेमाल किया जाए तो कढ़ी को और पौष्टिक बनाया जा सकता है. इसके अलावा चावल के साथ इसका कॉम्बिनेशन पेट को ठंडा भी रखता है. कढ़ी चावल खाने के फायदे तो आप जान गए, अब इसके नुकसान भी जान लेते हैं.
गलत समय पर खाने पर ये व्यंजन नुकसान भी करता है. आयुर्वेद में बताया गया है कि अगर कफ की समस्या है तो कढ़ी-चावल खाने से परहेज करना चाहिए. कढ़ी में दही होता है, जो कफ को बढ़ाने का काम करता है. जुकाम में भी कढ़ी का सेवन न करें.
शुगर के मरीज को कढ़ी-चावल देने से बचना चाहिए, क्योंकि ये व्यंजन शर्करा को रक्त में अचानक बढ़ा सकता है. किसी तरह का चावल भी शुगर के मरीजों को नहीं देना चाहिए. इसके अलावा रात के समय भी दही या दही से बने व्यंजन को नहीं खाना चाहिए. हमेशा ताजी कढ़ी का सेवन करना चाहिए. ताजी कढ़ी फायदे देती है, जबकि बासी कढ़ी पेट में गैस और कब्ज की समस्या कर सकती है.
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पीएस/वीसी
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