पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने के केंद्र सरकार के इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को चुनौती देते हुए सुप्रीमकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने सरकार के इस फैसले पर कई गंभीर सवाल खड़ा किये हैं। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने मांग की है कि इथेनॉल मिले पेट्रोल के अलावा, इथेनॉल फ्री पेट्रोल का ऑप्शन भी उपलब्ध होना चाहिए।
उपभोक्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघनयाचिकाकर्ता एडवोकेट अक्षय मल्होत्रा ने कहा है कि देश भर में बिना इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल का विकल्प दिए सिर्फ एथेनॉल मिक्स ई-20 पेट्रोल की बिक्री करना उपभोक्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि करोड़ों वाहन अभी भी इस तरह के पेट्रोल के अनुकूल नहीं हैं। इससे लाखों वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है। यह उनके साथ गलत है जिनके वाहन ई-20 के अनुकूल नहीं हैं।
सरकार का फैसला मनमाना#BREAKING PIL filed in #SupremeCourt challenging the Union Government's Ethanol Blending Program to mix 20% ethanol in petrol.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 22, 2025
Petitioner says selling only #E20 petrol, without giving the option of Ethanol-free petrol, affects the fundamental rights of millions of vehicle… pic.twitter.com/Emm4xslLnZ
याचिकाकर्ता ने फैसले को मनमाना बताते हुए कहा है कि ई-20 पेट्रोल वाहन की ईंधन दक्षता को प्रभावित करता है। साथ ही यह वाहनों के पुर्जों में जंग का कारण बनता है। ऑटोमोबाइल निर्माताओं को अपने वाहनों को ई-20 के अनुरूप बनाने का अवसर दिए बिना इस नीति को लागू करना अनुचित और मनमाना है। याचिकाकर्ता ने मांग की है बिना इथेनॉल मिला पेट्रोल भी बेचा जाए। इसके अलावा ई-20 पेट्रोल पर लेबलिंग की जाए, ताकि स्पष्ट रहे कि क्या खरीदा जा रहा है।
गाड़ियों पर बुरा असर, पर दाम कम नहींयाचिका में कहा गया है कि एथेनॉल पेट्रोल से गाड़ियों की माइलेज घट रही है। याचिका में दलील दी गई है कि इस पेट्रोल के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान के क्लेम को बीमा कंपनियां भी खारिज कर रही हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार ने ऑटोमोबाइल कंपनियों को पर्याप्त समय दिए बिना ही इस नीति को लागू कर दिया, जो मनमाना और गैरजरूरी है।
याचिका में कहा गया है कि लाखों भारतीयों को पता ही नहीं है वह इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल ले रहे हैं। इस तरह से यह उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन है। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाया जाता है, फिर भी इसकी कीमत कम नहीं हुई है। कंपनियों द्वारा पेट्रोल घटक को कम करके जो लाभ कमाया जा रहा है, वह अंतिम ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया जा रहा है, जिन्हें उतनी ही राशि का भुगतान करना पड़ रहा है।
बुरे असर का अध्ययन जरूरीजनहित याचिका में वैश्विक चलन के विपरीत भारत में मौजूदा स्थिति को भी उजागर किया गया है। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन में, इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल अभी भी उपलब्ध है। वहीं, मिश्रित ईंधन पेट्रोल स्टेशनों पर स्पष्ट लेबल के साथ उपलब्ध हैं, ताकि उपभोक्ता सोच-समझकर चुनाव कर सकें। इसके विपरीत भारत में, वाहन चालकों को अंधेरे में रखा जा रहा है। पेट्रोल पंप केवल इथेनॉल-मिश्रित ईंधन बेचते हैं और यह नहीं बताते कि वाहनों में क्या डाला जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एथनॉल मुक्त पेट्रोल की बिक्री फिर से शुरू करे। इसके अलावा प्रत्येक पेट्रोल पंप पर एथनॉल मिक्स पेट्रोल पर स्पष्ट लेबलिंग जरूर की जाए। साथ ही गाड़ियों पर एथेनॉल मिक्स पेट्रोल के लंबे समय तक इस्तेमाल से पड़ने वाले बुरे असर का अध्ययन भी कराया जाए।
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