"गुजरात में कुछ ऐसी अनाम पार्टियां हैं जिनका नाम किसी ने नहीं सुना, लेकिन उन्हें ₹4,300 करोड़ का चंदा मिला!" यह सवाल लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉम एक्स पर अपने पोस्ट में उठाया और साथ ही 'दैनिक भास्कर' की एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट को साझा किया। राहुल गांधी ने सीधे-सीधे पूछा: इतने बड़े दान कहां से आए, कौन चला रहा है इन दलों को और पैसा आखिर गया कहां? साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग (EC) से जांच की मांग की।
राहुल गांधी ने क्या कहा?राहुल गांधी ने कहा, "गुजरात में कुछ ऐसी अनाम पार्टियां हैं जिनका नाम किसी ने नहीं सुना - लेकिन 4300 करोड़ का चंदा मिला! इन पार्टियों ने बहुत ही कम मौकों पर चुनाव लड़ा है, या उनपर खर्च किया है। यह हजारों करोड़ आए कहां से? चला कौन रहा है इन्हें? और पैसा गया कहां? क्या चुनाव आयोग जांच करेगा या फिर यहां भी पहले एफिडेविट मांगेगा? या फिर कानून ही बदल देगा, ताकि यह डेटा भी छिपाया जा सके?"
रिपोर्ट में क्या है?गुजरात में कुछ ऐसी अनाम पार्टियां हैं जिनका नाम किसी ने नहीं सुना - लेकिन 4300 करोड़ का चंदा मिला!
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 27, 2025
इन पार्टियों ने बहुत ही कम मौकों पर चुनाव लड़ा है, या उनपर खर्च किया है।
ये हजारों करोड़ आए कहां से? चला कौन रहा है इन्हें? और पैसा गया कहां?
क्या चुनाव आयोग जांच करेगा - या फिर… pic.twitter.com/CuP9elwPaY
'दैनिक भास्कर' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 से 2023-24 के बीच गुजरात में पंजीकृत कुछ कम-ज्ञात (या अनाम) राजनीतिक दलों को कुल मिलाकर करीब ₹4,300 करोड़ का चंदा मिला।
इन 10 दलों ने उस अवधि में मिलकर सिर्फ 43 उम्मीदवार उतारे और कुल करीब 54,069 वोट हासिल किए। इन पार्टियों के चुनावी खर्च में कुल खर्च सिर्फ ₹39.02 लाख दिखता है। वहीं, कुछ ऑडिट, बैंकिंग रिकॉर्ड में हजारों करोड़ (रिपोर्ट में ≈₹3,500 करोड़ का जिक्र) का लेनदेन पाया गया, यानी चुनावी रिपोर्ट और वित्तीय लेनने में भयंकर विसंगति पाई गई है।
भास्कर की रिपोर्ट ने यही तर्क रखा है कि छोटे-से दिखने वाले, चुनावी गतिविधि में नगण्य पार्टियों के खाते में इतने बड़े धन पाने का मतलब सिर्फ "रोजमर्रा की राजनीतिक फंडिंग" नहीं होना चाहिए। इसके पीछे पैटर्न और स्रोत की जांच जरूरी है।
ये मामला सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं'भास्कर' के खुलासे का परिप्रेक्ष्य समझने के लिए ADR की हालिया रिपोर्ट देखना भी जरूरी है। ADR ने पाया कि पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPPs) की घोषित आय में वित्तीय वर्ष 2022-23 में 223 फीसदी की तेज बढ़ोतरी हुई और 73 फीसदी से ज्यादा RUPPs ने अपनी फाइनेंशियल रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की। यानी पारदर्शिता बहुत कम है। गुजरात आधारित RUPPs टॉप-इकॉनामी में भी ऊपर रहे। ADR ने कुछ पार्टियों के बड़े-बड़े आंकलन भी रिपोर्ट किए (उदाहरण: भारतीय राष्ट्रीय जनता दल जैसे नामों ने बड़ी आय दिखाई)।
इससे साफ होता है कि भले ही 'भास्कर' का डेटा गुजरात पर केंद्रित हो, लेकिन देश के राजनीतिक फंडिंग तंत्र में RUPPs के जरिए फंड फ्लो और ओपेक्स का जो पैटर्न दिख रहा है, वह बेहद चिंता का विषय है।
You may also like
कॉमनवेल्थ गेम्स की दावेदारी को कैबिनेट की मंजूरी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जताया पीएम मोदी का आभार
'भारत की विचारधारा को दर्शाते हैं मोहन भागवत के विचार', संघ प्रमुख के बयान पर बोले भाजपा नेता
'वोटर अधिकार यात्रा' का परिणाम 'भारत जोड़ो यात्रा' जैसा होगा : प्रमोद कृष्णम
Bihar Chunav 2025: JDU ने पूछा- तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों नहीं घोषित कर रही कांग्रेस?
प्रधानमंत्री ने संवत्सरी पर शुभकामनाएं देते हुए क्षमा, करुणा और विनम्रता का आह्वान किया