मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा का अमेरिका से प्रत्यर्पण भारत के लिए बड़ी कानूनी और कूटनीतिक जीत है। अब देश के दुश्मन को न्याय के कठघरे में खड़ा किया जा सकेगा और उन लोगों को इंसाफ मिलेगा, जिन्होंने इस आतंकी हमले में अपनों को खोया है। रंग लाई मेहनत: मुंबई पर आतंकी हमला साल 2008 में हुआ था। 16 साल से ज्यादा वक्त बीत गया, लेकिन उसका दर्द अब भी है। वजह कि सारे दोषियों को आज तक भी उनके किए की सजा नहीं मिल सकी है। कई दोषी सीमा पार शरण लिए हुए हैं। इस लिहाज से राणा का प्रत्यर्पण बहुत बड़ी सफलता है। इसके पीछे भारत सरकार और उसके उन अफसरों की कड़ी मेहनत है, जो 2019 से ही राणा को भारत लाने के प्रयास में जुटे थे। पाकिस्तान पर दबाव: तमाम सबूत होने के बाद भी पाकिस्तान इस हमले के पीछे अपनी कोई भूमिका होने से इनकार करता रहा है। हालांकि वह आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकवादी सरगनाओं को बचाता भी रहा है। राणा के माध्यम से एजेंसीज पूरा सच जान सकती हैं। इससे पाकिस्तान पर प्रेशर बनाया जा सकेगा कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का दिखावा न करे, बल्कि हकीकत में कदम उठाए। चूंकि मुंबई अटैक में 6 अमेरिकी नागरिकों की भी जान गई थी, इसलिए इस्लामाबाद पर वॉशिंगटन का भी दबाव होगा। भारत का बढ़ता कद: राणा ने भारत आने से बचने के लिए अमेरिकी अदालतों में तमाम दलीलें दीं। यहां तक कहा कि एक अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती, लेकिन भारत ने बखूबी उसका काउंटर किया। इससे संदेश गया है कि मानवता के गुनहगार कानून को ढाल बनाकर लंबे समय तक बच नहीं सकते। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस साल फरवरी में ही कह दिया था कि मुंबई आतंकी हमले के लिए राणा को भारत में न्याय का सामना करना पड़ेगा। अभी काम बाकी: तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण एक बड़ी जीत है, पर पूरी नहीं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का एक बड़ा काम यहां से शुरू होता है। मुंबई पर आतंकी हमले की पूरी प्लानिंग और फंडिंग के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI व उसकी जमीन पर सक्रिय आतंकवादी संगठनों का हाथ था, इसमें कोई शक नहीं रह गया है। फिर भी कुछ कड़िया बाकी हैं। राणा के जरिये भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उन कड़ियों को जोड़ सकती हैं। इससे कई राज खुलने और जांच को नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
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