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बेकार का डर

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भारत और पाकिस्तान के बीच का हालिया टकराव किसी भी वक्त ऐसे मोड़ पर नहीं पहुंचा, जब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नौबत आई हो - चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान का यह बयान आशंकाओं को दूर करने के साथ ही एटमी ताकत के रूप में नई दिल्ली की परिपक्वता और जिम्मेदारी के भाव को भी दिखाता है। CDS ने कहा कि दोनों देशों की सेनाओं ने तार्किक रुख अपनाया यानी उन्होंने पाकिस्तान को भी उसके हिस्से का श्रेय दिया, जो उनका बड़प्पन है।



पश्चिम की चिंता: भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव बढ़ता है, तो पश्चिम की तरफ से सबसे पहली चिंता यही जताई जाती है कि अगर टकराव हुआ तो वह परमाणु युद्ध तक पहुंच सकता है। कारगिल से लेकर बालाकोट तक, अतीत में कई बार ऐसा हो चुका है। यहां तक कि कारगिल को लेकर कहानियां तक फैल चुकी हैं कि परमाणु युद्ध आसन्न था, पर अमेरिकी दखल से टल गया। इस बार भी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एटमी वॉर रुकवाने के लिए खुद से अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। विडंबना है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का इकलौता कलंक अमेरिका के ही माथे है।



भारत की परमाणु नीति: पश्चिम का यह अंदेशा दरअसल भारत की क्षमताओं को कम करके आंकना है। परमाणु हथियार किसी भी युद्ध का अंतिम विकल्प हैं और उस सीमा पर पहुंचने से पहले कई सारे पड़ाव आते हैं। भारत ने वैसे भी 'नो फर्स्ट यूज' की नीति अपना रखी है यानी देश परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। किसी ऐसे मुल्क के खिलाफ भी भारत एटमी वेपन नहीं निकालेगा, जिसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं। भारत ने यह ताकत हासिल की है सुरक्षा के लिए, आक्रामकता दिखाने और आक्रमण के लिए नहीं।



तार्किक जवाब: CDS ने इंटरव्यू में कहा कि सेना के लोग सबसे ज्यादा तर्कसंगत होते हैं, क्योंकि उन्हें परिणाम का पता है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुआ था। पहलगाम आतंकी हमले को लेकर पूरा देश गुस्से से उबल रहा था, लेकिन तब भी भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में संयम बरता और केवल पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया। पाकिस्तान की तरफ से उकसावे वाली कार्रवाइयों के बावजूद भारत के हम सटीक और नियंत्रित रहे।



अतीत से सबक: परमाणु हमले की विभीषिका दुनिया देख चुकी है। एक ही झटके में लाखों जिंदगियां तबाह हो गई थीं और आने वाली कई नस्लें दशकों तक वह दंश झेलती रहीं। हिरोशिमा और नागासाकी के साथ जो हुआ था, वह मानव समुदाय के लिए सबक है कि कोई भी युद्ध उस बिंदू तक नहीं पहुंचना चाहिए, जहां ऐसी नौबत आए।

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