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NEET Result 2025: नीट रिजल्ट के इंतजार में खाली बैठना बड़ी भूल, एक्सपर्ट ने बताईं 7 जरूरी चीजें

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NEET (नीट) परीक्षा खत्म होने और रिजल्ट आने के बाद या इससे ठीक पहले, एक नई दौड़ शुरू होती है - काउंसलिंग की दौड़। लाखों छात्रों के लिए, यह परीक्षा सिर्फ पास करने के बारे में नहीं है, बल्कि अपने नंबरों से एक मेडिकल सीट पक्की करने पर पूरा ध्यान होता है। आज के समय में, जहां हर चीज डेटा पर आधारित है और नियमों में बदलाव होते रहते हैं, ऐसे 2025 के समय में NEET (नीट) के छात्र को कुछ खास बातों पर ध्यान रखना चाहिए? परीक्षा के बाद क्या मायने रखता है, यहां करियर एक्सपर्ट गौरव त्यागी से जानिए।
1. NEET (नीट) के बाद सुस्ती: कुछ न करने से नुकसान image

अक्सर नीट रिजल्ट आने और काउंसलिंग शुरू होने के बीच में गलत जानकारी, उलझन और बहुत सारे फैसले लेने की वजह से छात्र परेशान हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि सब कुछ अपने आप साफ हो जाएगा और कुछ नहीं करते। इस तरह खाली बैठे रहने से काफी नुकसान हो सकता है।



समझदार छात्र रिजल्ट आने से पहले ही काउंसलिंग की प्रक्रिया पर नजर रखना शुरू कर देते हैं। वे काउंसलिंग के राउंड, फीस और जरूरी डॉक्यूमेंट्स बारे में जानकारी जुटाते हैं। ईमेल का इंतजार न करें, बल्कि अगले कदम के लिए तैयार रहें।


2. सीट मैट्रिक्स का खेल: सिर्फ नंबरों पर ध्यान न दें image

हर साल, सीट मैट्रिक्स बदलता है। सीटों की संख्या बदलती है, नए मेडिकल कॉलेज खुलते हैं, कुछ में नईसीटें आती हैं, और कुछ कॉलेजों की मान्यता रद्द हो जाती है। लेकिन छात्र इस जानकारी को गलत तरीके से पढ़ते हैं और सिर्फ नंबरों पर ध्यान देते हैं।ज़्यादा जरूरी यह है कि आपकी केटेगरी, कोटा और योग्यता के हिसाब से कितनी सीटें उपलब्ध हैं।



उदाहरण के लिए, एक कॉलेज में 100 सीटें हैं, लेकिन जनरल AIQ (एआईक्यू) के लिए सिर्फ 7 सीटें ही हैं। इसलिए, सिर्फ बताए गए नंबर पर नहीं,बल्कि असली नंबर पर ध्यान दें।


3. डोमिसाइल की उलझन: सिर्फ हेडलाइन नहीं, पूरी जानकारी पढ़ें image

NEET 2020 के बाद, कई राज्यों ने अपने नियमों को सख्त या आसान बना दिया है। उदाहरण के लिए, दिल्ली और राजस्थान ने डोमिसाइल के नए नियम बनाए हैं, जिससे दूसरे राज्यों के छात्र काउंसलिंग में भाग नहीं ले सकते।



अगर आप राज्य के कोटा से अप्लाई कर रहे हैं, तो नियमों को ध्यान से पढ़ें, सिर्फ अफवाहों या अपने सीनियर्स की बातों पर भरोसा न करें। एकगलत नियम की वजह से आपका एप्लीकेशन रद्द हो सकता है।


4. चॉइस लॉकिंग की चिंता: अंदाजा नहीं, गेम थ्योरी का इस्तेमाल करें image

ज्यादातर छात्र चॉइस फिलिंग को सिर्फ अपनी पसंद की लिस्ट बनाने जैसा समझते हैं। लेकिन आजकल ज्यादा नंबर लानेवाले छात्र गेम थ्योरी) और रिजल्ट का अनुमान लगाकर चॉइस फिलिंग करते हैं। क्या आपको कम रैंक वाले कॉलेज को पहले रखना चाहिए ताकि आपको मॉप-अप राउंड में जाने से रोका जा सके?



क्याआपको कुछ डीम्ड यूनिवर्सिटी को छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनमें छिपे हुए खर्चे या बॉन्ड होते हैं? पिछले साल केक्लोजिंग रैंक को देखकर इस साल के बारे में अंदाज़ा लगाना काफी नहीं है। आपको यह देखना होगा कि इस साल छात्रों का रुझानकैसा रहेगा, और उसके हिसाब से अपनी चॉइस भरनी होगी।


5. काउंसलिंग डेट्स का टकराव: एक राज्य के चक्कर में दूसरे राज्य को न छोड़ें image

MCC (एमसीसी), AIQ (एआईक्यू) और कई राज्यों में काउंसलिंग के कई राउंड एक ही समय पर होते हैं, इसलिए छात्र अक्सर एक के चक्कर में दूसरे को छोड़ देते हैं। आपको सभी काउंसलिंग की तारीखों पर ध्यान रखना होगा और सोच-समझकर फैसला लेना होगा कि किसमें भाग लेना है।


6. MBBS ही सब कुछ नहीं: दूसरे मेडिकल कोर्स भी हैं image

इस साल, पैरामेडिकल टेक, एलाइड हेल्थ साइंसेज और पब्लिक हेल्थ कोर्स (course) में छात्रों की दिलचस्पी बढ़ी है। जैसे-जैसे नौकरी के बाजार में बदलाव हो रहा है और AI (एआई) का असर बढ़ रहा है, BPT (बीपीटी), BSc क्लीनिकल साइकोलॉजी (बीएससी क्लीनिकल साइकोलॉजी) और BPH (बीपीएच) जैसे प्रोग्राम अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं।



इनमें स्थिरता है, कम पैसे लगते हैं, और करियर (career) के जल्दी मौके मिलते हैं। अगर आपके NEET (नीट) में इतने नंबर नहीं हैं कि आपको MBBS (एमबीबीएस) मिल सके, तो ड्रॉप (drop) लेने से पहले दूसरे विकल्पों पर भी विचार करें।


7. सिर्फ टॉपर ही नहीं, समझदार लोग भी होते हैं सफल image

NEET (नीट) के बाद, नंबरों से ज़्यादा रणनीति मायने रखती है। सिर्फ टॉपर ही नहीं, बल्कि वे छात्र सफल होते हैं जो सिस्टमॉ की बारीकियों को समझते हैं, हमेशा अपडेट रहते हैं, और जल्दी से बदलाव करते हैं। चाहे वह राज्य के बॉन्ड पर नजर रखना हो, सीटों के खाली होने का हिसाब लगाना हो, या अपग्रेडेशन का असली मतलब समझना हो, हर जानकारी जरूरी होती है।

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