नई दिल्ली : दिल्ली में निचली अदालतों में जाने वाले ज़्यादातर लोगों के लिए न्याय के लिए सालों का इंतजार एक कड़वी सच्चाई है। कई इंडिपेंडेंट रिपोर्ट्स और न्यायपालिका के अपने डेटा से पता चलता है कि केस बढ़ते जा रहे हैं। इसकी वजह है कि बढ़ते ज्यूडिशियल बैकलॉग से पेंडेंसी और बढ़ रही है। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) के डेटा के अनुसार, राजधानी में फैली दिल्ली की निचली अदालतों में 15.6 लाख केस पेंडिंग हैं। इनमें 13.5 लाख क्रिमिनल और 2.18 लाख सिविल केस हैं। खास बात है कि मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
हर जज के पास औसतन 2200 केस
दिल्ली की निचली अदालतों में 700 से कुछ अधिक जज हैं। इसका अर्थ है कि हर जज औसतन 2,200 केसों की पेंडेंसी से निपट रहा है। ऐसे में बड़ा और अहम सवाल है कि दिल्ली NCT में इतने अधिक पेंडिंग मामलों के पीछे क्या वजह है। वह भी तब, जब यहां की आबादी लगभग 3 करोड़ है।
केसों के फैसले से अधिक दर्ज हो रहे केस
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जितने केस निपटाए जा रहे हैं, उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है, जबकि जजों की संख्या लगभग उतनी ही है। 2018 में 3.78 लाख केस निपटाए गए थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 7.96 लाख हो गया। हालांकि, इसी दौरान, नए केस आने की संख्या भी दोगुनी से अधिक हो गई, जो 4.84 लाख से बढ़कर 10.2 लाख हो गई।
साल 2018 से 2025 तक, हर साल दर्ज होने वाले और निपटाए जाने वाले केसों के बीच औसत अंतर 1.3 लाख था। इसका मतलब है कि दिल्ली की अदालतें तेजी से कई केस निपटा रही हैं, लेकिन उससे भी अधिक नए केस आ रहे हैं।
दो-तिहाई केस 2023 से 2025 के बीच
अधिकतर पेंडिंग केस हाल ही में शुरू किए गए हैं। सभी पेंडिंग केस में से दो-तिहाई केस 2023 से 2025 के बीच शुरू किए गए हैं। बाकी 94% केस 2018 के बाद से शुरू किए गए हैं। 2017 से पहले के सालों के केस सभी पेंडिंग केस का सिर्फ़ 6% हैं। दिल्ली के दो सबसे पुराने केस 1969 के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार हर दिन, राजधानी में लगभग 700 जज करीब 28,000 मामलों की सुनवाई करते हैं। इसका मतलब है कि हर जज औसतन 40 मामलों की सुनवाई करता है। कुछ जजों के पास 10,000 से अधिक मामले पेंडिंग हैं और वे हर दिन 150 से अधिक मामलों की सुनवाई करते हैं। वहीं, कुछ जजों के पास सिर्फ 60 मामले पेंडिंग हैं और वे हर दिन सिर्फ चार से पांच मामलों की सुनवाई करते हैं।
ऐसा अलग-अलग कोर्ट में सौंपे गए मामलों के नेचर की वजह से है। जो कोर्ट सिर्फ चेक बाउंस के मामले सुनते हैं, वे रोजाना औसतन 120 से अधिक मामले सुन रहे हैं। कानून के मुताबिक, ऐसे मामलों को छह महीने में निपटा देना चाहिए। हालांकि, बहुत अधिक मामले पेंडिंग होने की वजह से, दो सुनवाई के बीच एक साल का अंतर होता है। दूसरी ओर, एक कोर्ट सिर्फ 34,000 करोड़ रुपये के दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) बैंक 'फ्रॉड' से जुड़ा सिर्फ एक मामला सुन रहा है।
फैसले में देरी की वजह क्या है?
NJGD के डेटा के अनुसार, 3.26 लाख मामले (कुल का 20%) इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि 'वकील उपलब्ध नहीं है', जबकि 2.23 लाख (14%) मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि उन पर स्टे लगा हुआ है। 25,000 से अधिक मामले (1.5%) इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि आरोपी फरार है। 1.3% से ज़्यादा मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि डॉक्यूमेंट्स का इंतज़ार है। वहीं, 1% से थोड़ा कम (13,600) मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि गवाहों का इंतजार है।
हर जज के पास औसतन 2200 केस
दिल्ली की निचली अदालतों में 700 से कुछ अधिक जज हैं। इसका अर्थ है कि हर जज औसतन 2,200 केसों की पेंडेंसी से निपट रहा है। ऐसे में बड़ा और अहम सवाल है कि दिल्ली NCT में इतने अधिक पेंडिंग मामलों के पीछे क्या वजह है। वह भी तब, जब यहां की आबादी लगभग 3 करोड़ है।
केसों के फैसले से अधिक दर्ज हो रहे केस
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जितने केस निपटाए जा रहे हैं, उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है, जबकि जजों की संख्या लगभग उतनी ही है। 2018 में 3.78 लाख केस निपटाए गए थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 7.96 लाख हो गया। हालांकि, इसी दौरान, नए केस आने की संख्या भी दोगुनी से अधिक हो गई, जो 4.84 लाख से बढ़कर 10.2 लाख हो गई।
साल 2018 से 2025 तक, हर साल दर्ज होने वाले और निपटाए जाने वाले केसों के बीच औसत अंतर 1.3 लाख था। इसका मतलब है कि दिल्ली की अदालतें तेजी से कई केस निपटा रही हैं, लेकिन उससे भी अधिक नए केस आ रहे हैं।
दो-तिहाई केस 2023 से 2025 के बीच
अधिकतर पेंडिंग केस हाल ही में शुरू किए गए हैं। सभी पेंडिंग केस में से दो-तिहाई केस 2023 से 2025 के बीच शुरू किए गए हैं। बाकी 94% केस 2018 के बाद से शुरू किए गए हैं। 2017 से पहले के सालों के केस सभी पेंडिंग केस का सिर्फ़ 6% हैं। दिल्ली के दो सबसे पुराने केस 1969 के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार हर दिन, राजधानी में लगभग 700 जज करीब 28,000 मामलों की सुनवाई करते हैं। इसका मतलब है कि हर जज औसतन 40 मामलों की सुनवाई करता है। कुछ जजों के पास 10,000 से अधिक मामले पेंडिंग हैं और वे हर दिन 150 से अधिक मामलों की सुनवाई करते हैं। वहीं, कुछ जजों के पास सिर्फ 60 मामले पेंडिंग हैं और वे हर दिन सिर्फ चार से पांच मामलों की सुनवाई करते हैं।
ऐसा अलग-अलग कोर्ट में सौंपे गए मामलों के नेचर की वजह से है। जो कोर्ट सिर्फ चेक बाउंस के मामले सुनते हैं, वे रोजाना औसतन 120 से अधिक मामले सुन रहे हैं। कानून के मुताबिक, ऐसे मामलों को छह महीने में निपटा देना चाहिए। हालांकि, बहुत अधिक मामले पेंडिंग होने की वजह से, दो सुनवाई के बीच एक साल का अंतर होता है। दूसरी ओर, एक कोर्ट सिर्फ 34,000 करोड़ रुपये के दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) बैंक 'फ्रॉड' से जुड़ा सिर्फ एक मामला सुन रहा है।
फैसले में देरी की वजह क्या है?
NJGD के डेटा के अनुसार, 3.26 लाख मामले (कुल का 20%) इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि 'वकील उपलब्ध नहीं है', जबकि 2.23 लाख (14%) मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि उन पर स्टे लगा हुआ है। 25,000 से अधिक मामले (1.5%) इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि आरोपी फरार है। 1.3% से ज़्यादा मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि डॉक्यूमेंट्स का इंतज़ार है। वहीं, 1% से थोड़ा कम (13,600) मामले इसलिए पेंडिंग हैं क्योंकि गवाहों का इंतजार है।
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