राजस्थान के झालावाड़ जिले में पिपलोदी नाम का एक छोटा सा गांव है, जो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। हाल ही में यहां एक बड़ा हादसा हुआ। यहां के प्राइमरी स्कूल की छत भारी बारिश में ढह गई और 50 बच्चों की पढ़ाई के लिए अचानक कोई ठिकाना नहीं बचा। हादसे के बाद सबसे बड़ी मुश्किल थी कि बच्चों की पढ़ाई कहां और कैसे शुरू की जाए। तभी गांव के ही एक किसान मोर सिंह ने ऐसा फैसला लिया, जिसने सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने अपना घर ही स्कूल के लिए दे दिया और खुद अपने परिवार के साथ खेत में तिरपाल की झोपड़ी में रहने लगे।
यह हादसा 25 जुलाई को हुआ था, जब स्कूल की छत गिरी। स्कूल में रोज की तरह पढ़ाई चल रही थी, तभी स्कूल की इमारत ढह गई और सात मासूम बच्चों की जान चली गई। 21 लोग चोटिल हुए। यह एक भयानक हादसा था। ऐसे मुश्किल समय में 60 साल के एक किसान और मजदूर मोर सिंह आगे आए। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था, लेकिन उनके दिल में शिक्षा और बच्चों के भविष्य के लिए गहरा प्यार था। उन्होंने फैसला किया कि उनका दो कमरों का पक्का घर, जिसे उन्होंने 2008 से 2012 तक चार साल लगाकर बड़ी मेहनत से बनाया था, वह अब बच्चों के स्कूल में बदल जाएगा।
जिंदगी भर की कमाई था घरआपको बता दें कि मोर सिंह के लिए यह घर सिर्फ ईंट-सीमेंट का ढांचा नहीं था, बल्कि यह उनके जीवन भर की कमाई और सपनों का घर था। उन्होंने अपनी दिन भर की मजदूरी से कुछ पैसे बचाकर, ईंटें और छत का सामान खरीदा था। उनका कहना है कि बच्चे पढ़ाई से वंचित नहीं रहने चाहिए। उनका भविष्य ही मेरा भविष्य है। अगर मेरे घर में बच्चे पढ़ लेंगे तो इससे बड़ी सेवा और क्या होगी। मैं अपने परिवार के साथ खेत में रह लूंगा, लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए।
अब एक झोपड़ी में रह रहा 8 लोगों का परिवार
मोर सिंह का परिवार आठ लोगों का है। दो साल का पोता है। 27 जुलाई को सभी अपने पक्के घर को छोड़कर खेत पर बनी अस्थायी झोपड़ी में रहने लगे गए। प्लास्टिक और तिरपाल से बनी इस झोपड़ी में दो चारपाइयां, एक चूल्हा और कुछ बर्तन ही हैं। बाकी सामान रिश्तेदारों के यहां रख दिया गया। बरसात में छत टपकती है, रात को कीड़े-मकौड़े और सांपों से बचने के लिए वे घास जलाते हैं। लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं की। सबको गर्व है कि उनके घर में अब गांव के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। मोर सिंह स्वीकार करते हैं कि यह फैसला आसान नहीं था लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए यह जरूरी था। उनका कहना है कि ये कठिन समय है, लेकिन हमेशा नहीं रहेगा। नया स्कूल भवन बनते ही हम अपने घर लौट जाएंगे।
बिना किसी स्वार्थ, सच्चे त्याग की मिसालमोर सिंह ने बिना किसी प्रचार और बिना अपने लिए कुछ मांग रखते अपने घर को स्कूल में बदल दिया। उन्होंने किसी पंचायत या अधिकारी से संपर्क नहीं किया। उनका मानना है कि सरकार की अनदेखी के बावजूद हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए खुद ही कुछ करना होगा। मोर सिंह की इस कुर्बानी से अब पिपलोदी के बच्चे फिर से स्कूल जा पा रहे हैं ।
जिला प्रशासन ने मोर सिंह को उनके असाधारण काम के लिए 1 लाख रुपये का चेक दिया। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने उस पैसे का क्या किया तो सिंह ने बताया कि उन्होंने उस पैसे से ऊंची जमीन पर एक पशु शेड बनवाया, क्योंकि जानवर पानी भरे चरागाहों से बीमार पड़ने लगे थे। मोर सिंह का घर अब पिपलोदी में एकमात्र ऐसी जगह है जहां पढ़ाई जारी है। वह कभी-कभी वहां जाते हैं, बस बाहर खड़े होकर बच्चों को सुनते हैं और कुछ वक्त बाद अपनी झोपड़ी में लौट जाते हैं।
यह हादसा 25 जुलाई को हुआ था, जब स्कूल की छत गिरी। स्कूल में रोज की तरह पढ़ाई चल रही थी, तभी स्कूल की इमारत ढह गई और सात मासूम बच्चों की जान चली गई। 21 लोग चोटिल हुए। यह एक भयानक हादसा था। ऐसे मुश्किल समय में 60 साल के एक किसान और मजदूर मोर सिंह आगे आए। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था, लेकिन उनके दिल में शिक्षा और बच्चों के भविष्य के लिए गहरा प्यार था। उन्होंने फैसला किया कि उनका दो कमरों का पक्का घर, जिसे उन्होंने 2008 से 2012 तक चार साल लगाकर बड़ी मेहनत से बनाया था, वह अब बच्चों के स्कूल में बदल जाएगा।
जिंदगी भर की कमाई था घरआपको बता दें कि मोर सिंह के लिए यह घर सिर्फ ईंट-सीमेंट का ढांचा नहीं था, बल्कि यह उनके जीवन भर की कमाई और सपनों का घर था। उन्होंने अपनी दिन भर की मजदूरी से कुछ पैसे बचाकर, ईंटें और छत का सामान खरीदा था। उनका कहना है कि बच्चे पढ़ाई से वंचित नहीं रहने चाहिए। उनका भविष्य ही मेरा भविष्य है। अगर मेरे घर में बच्चे पढ़ लेंगे तो इससे बड़ी सेवा और क्या होगी। मैं अपने परिवार के साथ खेत में रह लूंगा, लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए।
अब एक झोपड़ी में रह रहा 8 लोगों का परिवार
मोर सिंह का परिवार आठ लोगों का है। दो साल का पोता है। 27 जुलाई को सभी अपने पक्के घर को छोड़कर खेत पर बनी अस्थायी झोपड़ी में रहने लगे गए। प्लास्टिक और तिरपाल से बनी इस झोपड़ी में दो चारपाइयां, एक चूल्हा और कुछ बर्तन ही हैं। बाकी सामान रिश्तेदारों के यहां रख दिया गया। बरसात में छत टपकती है, रात को कीड़े-मकौड़े और सांपों से बचने के लिए वे घास जलाते हैं। लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं की। सबको गर्व है कि उनके घर में अब गांव के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। मोर सिंह स्वीकार करते हैं कि यह फैसला आसान नहीं था लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए यह जरूरी था। उनका कहना है कि ये कठिन समय है, लेकिन हमेशा नहीं रहेगा। नया स्कूल भवन बनते ही हम अपने घर लौट जाएंगे।
बिना किसी स्वार्थ, सच्चे त्याग की मिसालमोर सिंह ने बिना किसी प्रचार और बिना अपने लिए कुछ मांग रखते अपने घर को स्कूल में बदल दिया। उन्होंने किसी पंचायत या अधिकारी से संपर्क नहीं किया। उनका मानना है कि सरकार की अनदेखी के बावजूद हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए खुद ही कुछ करना होगा। मोर सिंह की इस कुर्बानी से अब पिपलोदी के बच्चे फिर से स्कूल जा पा रहे हैं ।
जिला प्रशासन ने मोर सिंह को उनके असाधारण काम के लिए 1 लाख रुपये का चेक दिया। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने उस पैसे का क्या किया तो सिंह ने बताया कि उन्होंने उस पैसे से ऊंची जमीन पर एक पशु शेड बनवाया, क्योंकि जानवर पानी भरे चरागाहों से बीमार पड़ने लगे थे। मोर सिंह का घर अब पिपलोदी में एकमात्र ऐसी जगह है जहां पढ़ाई जारी है। वह कभी-कभी वहां जाते हैं, बस बाहर खड़े होकर बच्चों को सुनते हैं और कुछ वक्त बाद अपनी झोपड़ी में लौट जाते हैं।
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