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इस्लामिक देशों में भारत की डिप्लोमेसी की जबरदस्त जीत! पाकिस्तान का नहीं चल पा रहा 'इस्लाम कार्ड', जानें कौन किसके साथ?

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नई दिल्ली/इस्लामाबाद: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। आशंका है कि भारत, पाकिस्तान पर लिमिटेड स्ट्राइक कर सकता है और पूर्ण पैमाने पर युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि दुनिया के कुछ देशों ने दोनों देशों के बीच युद्ध को रोकने के लिए मध्यस्थता की पेशकश जरूर की है, लेकिन माना जा रहा है कि दुनिया की प्रतिक्रिया वैसी नहीं है, जिस तरह से होनी चाहिए। अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत के कार्रवाई का समर्थन करते हुए पाकिस्तान को आतंकवादियों का शिकार करने में भारत की मदद करने का आह्वान किया है। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान इस्लामिक देशों पर रहा है, जिन्हें पाकिस्तान इस्लान की बुनियाद पर साधने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के लिए परेशान करने वाली बात ये है कि ज्यादातर इस्लामिक देशों ने इस्लामिक नजरिए से हटकर जियो-पॉलिटिक्स की बुनियाद पर भारत और पाकिस्तान के बीच इस तनाव को देखा है। पाकिस्तान के लिए ये बहुत बड़ा झटका है। भारत के शीर्ष राजनयिक सूत्रों के हवाले से सीएनएन-न्यूज18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर मुस्लिम बहुल सरकारें, धार्मिक एकजुटता के बजाय भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देती हैं। भारतीय राजनयिकों ने कहा है कि सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे खाड़ी देश अब व्यापार, ऊर्जा निर्यात और श्रम के लिए भारत पर बहुत ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। इसके अलावा पाकिस्तानी नागरिकों के साथ इन देशों का अनुभव काफी खराब है। ऐसे में इन देशों में इस्लाम के आधार पर अब पाकिस्तान का समर्थन देने का मन नहीं रहा है। भारतीय सूत्रों ने कहा है कि संकट के समय ज्यादातर मुस्लिम देश की प्रतिक्रिया पाकिस्तान के लिए एकजुट समर्थन की नहीं है, बल्कि मुस्लिम देशों ने जियो-पॉलिटिकल हालात के आधार पर रणनीतिक संयम को अपनाया है। उन्होंने कहा कि ईरान और तुर्की, कूटनीति की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं, जबकि खाड़ी देश आर्थिक और क्षेत्रीय स्थिरता को महत्व दे रहे हैं। ईरानपहलगाम आतंकी हमले के फौरन बाद, जैसे की भारत और पाकिस्तान के बीच हालात बिगड़ने शुरू हुए, ईरान ने फौरन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करवाने का प्रस्ताव रख दिया। ईरान ने सीधा पाकिस्तान का समर्थन करने से मना कर दिया और उसने खुद को दोनों देशों के बीच तटस्थ पक्ष के तौर पर पेश किया है। भारत ने जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था, उसके बाद भी ईरान काफी हद तक चुप रहा था और अमेरिका और सऊदी अरब के साथ अपने तनाव पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। ईरान के साथ दिक्कत ये भी है कि उसके अमेरिका और सऊदी, दोनों के साथ संबंध कराब रहे हैं, ऐसे में वो भारत जैसे मजबूत देश के साथ कम से कम पाकिस्तान के लिए संबंध खराब नहीं करना चाहता है। इसके अलावा ईरान एक शिया देश है और पाकिस्तान में ईरान को लेकर कोई खास हमदर्दी नहीं है। सऊदी अरबपहलगाम में जब आतंकवादी हमला हुआ, उस वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सऊदी अरब के राजकीय दौरे पर थे। आतंकी हमले के बाद उन्हें अपना दौरा बीच में ही कम करते हुए लौटना पड़ा। सीएनएन न्यूज-18 ने एक भारतीय राजनयिक सूत्र के हवाले से कहा है कि"सऊदी अरब एक संतुलित और व्यावहारिक रुख अपना रहा है।" उन्होंने कहा कि "इसने कोई मजबूत सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है।" उन्होंने कहा कि "सऊदी अरब, अब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध को संतुलित कर चुका है। पाकिस्तान भले सऊदी को इस्लाम के आधार पर बड़ा भाई कहता है, मगर सऊदी और भारत के बीच काफी मजबूत संबंध हो चुके हैं। सऊदी अब पाकिस्तान के चश्मे से भारत को नहीं देखता है।" भारतीय राजनयिक सूत्रों ने कहा है कि "सऊदी राज्य की मौन प्रतिक्रिया से पता चलता है कि वह खुले तौर पर गठबंधन की तुलना में स्थिरता को प्राथमिकता देता है। सऊदी अरब ने भारत की सीधी आलोचना से परहेज किया है और कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद ऐसा दिख चुका है।" सूत्रों का कहना है कि प्रिंस सलमान के विजन-2030 के लिए भारत ज्यादा जरूरी है, इसीलिए पाकिस्तान की तुलना में भारत को प्राथमिकता मिल रही है। कतरकतर ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया है। कतर का फोकस अब 'इस्लामिक भाईचारे' से आगे निकलकर 2017-2021 की खाड़ी नाकाबंदी से उबरने और क्षेत्रीय विवादों में तटस्थता बनाए रखने की है। दूसरे खाड़ी देशों की तरह कतर ने भी भारत की निंदा करने से परहेज किया और अनुच्छेद 370 विवाद के दौरान बातचीत पर जोर दिया था। भारतीय सूत्रों ने बताया है कि नाकाबंदी के बाद की इसकी विदेश नीति वैचारिक एकजुटता के बजाय आर्थिक संबंधों को प्राथमिकता देती है, लिहाजा अब कतर के लिए पाकिस्तान की अहमियत भारत के मुकाबले काफी कम हो चुकी है। संयुक्त अरब अमीरातसंयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले की आलोचना तो की है, लेकिन उसने पाकिस्तान का समर्थन करने से मना कर दिया है। सूत्रों ने कहा कि यह ईरान के साथ तालमेल बिठाते हुए भारत के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाए रखना चाहता है। यूएई ने अनुच्छेद 370 मुद्दे के दौरान भारत के इस कदम का आंतरिक मामला बताते हुए समर्थन किया था, जो गहरे द्विपक्षीय व्यापार और सुरक्षा सहयोग को दर्शाता है। यूएई और भारत के बीच पिछले कुछ सालों में काफी मजबूत संबंध बने हैं। भारतीय राजनयिक सूत्रों ने कहा है कि भारत और यूएई के बीच आपसी ट्रेड 85 अरब डॉलर से ज्यादा हो चुका है और दोनों देशों का फोकस आपसी कारोबार को नये लेवल पर ले जाना है, लिहाजा उसने अब पाकिस्तान को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है। तुर्कीतुर्की ने ऐतिहासिक रूप से कश्मीर पर पाकिस्तान का हमेशा से समर्थन किया है। माना जा रहा है कि इस बार भी अगर भारत और पाकिस्तान में संबंध खराब होते हैं तो तुर्की, पाकिस्तान का पक्ष ले सकता है। लेकिन भारतीय राजनयिक सूत्रों का कुछ और मानना है। उनका कहना है कि तुर्की और भारत के बीच कारोबार तेजी से बढ़ा है और अगर तुर्की, पाकिस्तान का समर्थन करता है तो उसे व्यापारिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। भारत और तुर्की के बीच का कारोबार 2024 में 10 अरब डॉलर को पार कर चुका है। वहीं तुर्की को अभी भी यूरोपीय संघ की सदस्यता नहीं मिली है। तुर्की BRICS और एससीओ में आने की भरपूर कोशिश कर रहा है। ऐसे में भारत को नाराज कर वो पाकिस्तान के लिए खुले समर्थन का ऐलान नहीं कर सकता है।यही वजह थी कि जैसे ही पाकिस्तान ने झूठ फैलाना शुरू किया कि तुर्की ने हथियारों का जखीरा इस्लामाबाद और कराची एयरपोर्ट पर भेजे हैं, फौरन तुर्की ने एक बयान जारी करते हुए इसका खंडन कर दिया। सूत्रों ने कहा है कि मौजूदा तनाव के दौरान तुर्की की मौन प्रतिक्रिया, भारत के साथ उसके आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने और भारत को पूरी तरह से न टालने के कोशिशों को दर्शाती है।
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