BY HARSHUL YADAV
दीवाली खुशी का पर्व है। जब घर में शोक होता है, तो कोई भी त्योहार मनाना मुश्किल हो जाता है। यदि दीवाली के दिन परिवार का कोई सदस्य निधन हो जाता है, तो कई लोग इस पर्व को वर्षों तक नहीं मनाते हैं।
दीवाली हर साल कार्तिक अमावस्या के दिन मनाई जाती है। यह हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व है, जिसे सदियों से मनाया जा रहा है। दीवाली दीपों, रौशनी और खुशियों का त्योहार है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि किन में दीवाली का पर्व नहीं मनाना चाहिए।
कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि क्या परिवार में मृत्यु होने के बाद दीवाली मनाई जा सकती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जन्म से लेकर मृत्यु तक के कुछ नियम होते हैं, जिन्हें विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए। इन नियमों का पालन करने से परिवार में समस्याएं दूर रहती हैं।
क्या परिवार में मृत्यु होने पर दीवाली मनाई जा सकती है?
धार्मिक दृष्टिकोण से, यदि दीवाली के दिन परिवार में किसी का निधन होता है, तो इस दिन नहीं मनाया जाता है। इस समय पूजा-पाठ करना वर्जित होता है। क्योंकि इस अवधि में 'सूतक' काल होता है, जो 10 दिन से लेकर एक महीने तक चल सकता है। सूतक का पालन करते समय परिवार को त्योहार नहीं मनाना चाहिए और सभी को मिलकर मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
जब दीवाली के दिन मृत्यु होती है, तो कई परिवार वर्षों तक नहीं मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी पर्व के दौरान परिवार का कोई सदस्य निधन हो जाता है, तो वह त्योहार अमान्य माना जाता है।
सामान्य विश्वास के अनुसार, जिस दिन या वर्ष में परिवार के किसी का निधन होता है, उस वर्ष दीवाली का पर्व नहीं मनाना चाहिए। लेकिन यह भी कहा जाता है कि यदि परिवार में कोई नया जन्म होता है या उसी दिन नई दुल्हन आती है, तो त्योहार को मनाया जा सकता है।
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