देहरादून। आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने बचपन में माता-पिता के अनुशासन से हटकर आजादी की तलाश में अपने दादाजी के साथ गांव में खेती-किसानी शुरू की। यहीं से उनके मन में जैविक खेती का ऐसा बीज बोया गया, जो आज उन्हें ‘जैविक मैन’ के नाम से मशहूर कर चुका है।
हम बात कर रहे हैं भाजपा के संस्थापक सदस्य और पूर्व राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की। 22 सितंबर को उनका जन्मदिन है, और इस खास मौके पर हम उनके साल 2021 में यूपीयूकेलाइव को दिए गए एक खास इंटरव्यू की झलक आपके सामने ला रहे हैं।
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श्री सिन्हा ने जैविक खेती को न सिर्फ एक नया आयाम दिया है, बल्कि लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए समय-समय पर उपयोगी जानकारी भी साझा करते रहते हैं। उनका मानना है कि जैविक खेती ही हमारे स्वस्थ भविष्य की कुंजी है।
खाने में मिलावट और पेस्टिसाइड: एक छिपा खतराआर.के. सिन्हा का कहना है कि आज का इंसान अपने खाने-पीने की चीजों को लेकर बेहद परेशान है। बाजार में मिलावट की समस्या तो है ही, साथ ही खेती में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का बेतहाशा इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य को खोखला कर रहा है। इससे न सिर्फ गंभीर बीमारियां जन्म ले रही हैं, बल्कि हमारा जीवन भी खतरे में पड़ रहा है।
आज चाहे सब्जियां हों, धान, गेहूं या तिलहन, हर फसल में यूरिया और हानिकारक रसायनों का उपयोग हो रहा है। ये रसायन हमारे शरीर के लिए जहर की तरह हैं। स्वस्थ और लंबा जीवन जीने के लिए इनसे छुटकारा पाना बेहद जरूरी है। यूपीयूकेलाइव के एडिटर-इन-चीफ मोहम्मद फैजान के साथ खास बातचीत में सिन्हा ने इस विषय पर गहराई से प्रकाश डाला।
जैविक खेती: हमारी परंपरा, हमारा भविष्यसिन्हा का कहना है कि आज भले ही किसान रासायनिक खेती को अपनी परंपरा मानने लगे हों, लेकिन असल में हमारी सच्ची परंपरा जैविक खेती ही है। हमारे पूर्वज जैविक तरीकों से खेती करते थे, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी थी। हमें रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती को अपनाना होगा। तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य दे पाएंगे।
हरित क्रांति: किसानों के लिए एक भ्रमसिन्हा ने बताया कि हरित क्रांति के दौरान तत्कालीन सरकार और विदेशी ताकतों ने मिलकर किसानों को रासायनिक खेती की ओर धकेल दिया। अधिक पैदावार और मुनाफे का लालच देकर किसानों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके बाद से ही ‘जहर बोने, जहर काटने और जहर खाने’ की प्रक्रिया शुरू हो गई। यह एक ऐसा जाल था, जिसने हमारे खेती-किसानी के तौर-तरीकों को पूरी तरह बदल दिया।
सैकड़ों बीघा में जैविक खेती का कमालआर.के. सिन्हा अपने सैकड़ों बीघा के खेतों में जैविक तरीकों से खेती करते हैं। उनके फार्महाउस में गेहूं, धान, दालें, अलसी, सरसों, सफेद इलायची, तेजपत्ता, मसाले, फल और तमाम तरह की सब्जियों की खेती होती है। उनकी मेहनत और लगन ने साबित कर दिया है कि जैविक खेती न सिर्फ संभव है, बल्कि यह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।
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