गुनगुनी दोपहर ढल चुकी,
आ गयी सर्द सघन यामिनी।
मृण्मयी नैनों में इंतजार लिए,
प्रतीक्षारत विकल कामिनी।
काले कुंतल अब हंस रहे,
आनन को ये तो डस रहे।
नागिन से इसकी है लटें,
बेवजह ही ये तो उलझ रहे।
आ जाओ कि बिरहन तके,
सुने निलय में सेज सजे।
इंतजार है पर उर सस्मित,
हर आहट पर होती चकित।
वेणी के गजरे महक रहे,
मिलने को अलि से चहक रहे।
गजरे से पराग मधुप पिए,
खड़ी हूँ अंजुरी भर धूप लिए।
शलभ गजरे की ओट खड़े,
पीने को रस वो हैं अड़े|
वेणी से पुष्प बिखर गयी,
काया कंचन हो निखर गयी।
- सविता सिंह मीरा , जमशेदपुर
You may also like
चक्रवाती तूफ़ान दाना ने ओडिशा में दी दस्तक, पश्चिम बंगाल में भी हाई अलर्ट - जानें 7 बातें
जंक्शन ओवल में किया गया शेन वार्न स्टैंड का अनावरण
Udaipur मेनार में आठ दिवसीय पशु मेला शुरू, वीडियो में देखें सिटी पैलेस उदयपुर का इतिहास
आतंकी मामले में कनाडाई सीमा सुरक्षा अधिकारी से संपर्क, भारत पर आरोप
Diwali Special- दिवाली पर इस तरह जलाएं घर में दिए, मॉ लक्ष्मी का मिलेगा भरपूर आर्शिवाद