Family Poem
भीड़ में भी क्यों, दिखती है दूरी।
अपनों को अपना कहना है भारी।
शब्दों के धागे, रिश्तों की माला
पर मन के भीतर, दिखता है हाला।
मुश्किल घड़ी में सब, मोड़ते है मुख
बस रस्में निभाते, कैसी ये यारी।
रिश्तों के धागे, स्नेह का सागर।
पर व्यस्त निगाहें, नापती हैं गागर।
बेटा भी कहता, 'पिताजी मेरे',
पर सेवा के पथ पर, कैसी बेगारी।
सखाओं की महफिल, हहसी के ठिकाने
पर दर्द की आह में, सब हैं बेगाने।
वादे निभाते हैं, बस ऊपरी मन से,
भीतर की गहराई, उथली उधारी
पड़ोसी का घर भी, दिखता है अपना,
पर दीवारों का है, कैसा ये सपना।
सुख-दुख में झांकते, औपचारिक बनकर,
अंतर की आत्मीयता, लगती है कारी।
यह कैसा बंधन, यह कैसा नाता,
सिर्फ जुबां पर है, क्यों सब ये आता।
मन से जो जुड़े हों, वही तो हैं अपने,
बाकी की बातें तो बस, उथली दो धारी।
खोई सी संवेदना, रूखे से चेहरे,
दिखावे की दुनिया, और झूठे घेरे।
कब जागेगी मन की, सोई सी करुणा,
कब मिटेगी रिश्तों की, यह बेजारी।
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
You may also like
अलवर मिनी सचिवालय को बम से उड़ाने की धमकी से मचा हड़कंप! मेल में ISI का नाम, दोपहर 2 बजे विस्फोट की चेतावनी
KKR के लिए बुरी खबर, ये स्टार ऑलराउंडर IPL 2025 के बाकी मैचों से हुआ बाहर
Celebrity Endorsement : श्रद्धा कपूर बनीं यूरेका फोर्ब्स की नई ब्रांड एंबेसडर, कंपनी ने जताया भरोसा
SM Trends: 14 मई के बेहतरीन Tweet और Video के बारे में यहां जाने जो काफी तेजी से हो रहे हैं वायरल
Recipe- घर पर नाश्ते में बनाएं एग अप्पम, स्वाद सबको आएगा पसंद